21:18
किस से दूर
© हिमानी वशिष्ठ
नहीं जानती,
आज मैं किस से दूर जा रही हूँ।
इस शहर से,
उनसे,
खुदसे,
या फिर उस तन्हाई से,
जो उनके बिना इस शहर के हर कोने को,
सूनसान-वीरान बना देती है।
बहोत करीब से मिलता है वो,
इसी शहर में मुझसे अनजान बन कर वो।
जहाँ आकांशायें, उपेक्षाएं, महत्वाकांशायें हजार बिखरी हों वहां,
बहुत कठिन है एक निशछल प्रेम का सपना बुनना,
बहुत कठिन है प्यार भरा एक आशियाँ बसाना।
आज जो धुंधली दिख रही हैं इस शहर की गलियां,
कह नहीं सकती रेत चुभ रही है आँखों में,
या मेरे प्रेम का सपना बिखर रहा है ।
कह नहीं सकती,
आज मैं किससे दूर जा रही हूँ ।।
-हिमानी वशिष्ठ
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